"इंसान"
तुम् कूपमंडूक हो !
तुम्हारे सोच संकीर्ण हैं !
तुम्हारे विचार असहिष्णु हैं !
तुम्हारे व्यवहार कुटिल हैं !
तुम्हारे संस्कार नीच हैं !
में फिर भी तुम्हारे बिच हूँ !
क्योंकि मुझे विश्वास है ....
तुम् ...........!
सोचोगे .... अपनी संस्कृति पर !
समझोगे .....अपने इतिहास को !
ढलोगे ...... अपनी सभ्यता में !
बनोगे ......स्नेही, शीलवान, धैर्यवान !
लोग तुम्हें त्यागना चाहते है !
मैं फिर से कहता हूँ ....
बार-बार कहता हूँ .....!!
मैं तुम्हारे अंदर हूँ !
सहमा हुआ ! दुबका हुआ !
इंसान !
© रजनिश प्रियदर्शी
19/10/2016
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