Wednesday 8 March 2017

"इंसान"

"इंसान"

तुम् कूपमंडूक हो  !
तुम्हारे सोच संकीर्ण हैं  !
तुम्हारे विचार असहिष्णु हैं  !
तुम्हारे व्यवहार कुटिल हैं  !
तुम्हारे संस्कार नीच हैं  !

में फिर भी तुम्हारे बिच हूँ  !
क्योंकि मुझे विश्वास है ....

तुम् ...........!

सोचोगे .... अपनी संस्कृति पर  !
समझोगे .....अपने इतिहास को  !
ढलोगे ...... अपनी सभ्यता में  !
बनोगे ......स्नेही, शीलवान, धैर्यवान  !

लोग तुम्हें त्यागना चाहते है  !
मैं फिर से कहता हूँ ....
बार-बार कहता हूँ .....!!
मैं तुम्हारे अंदर हूँ  !

सहमा हुआ ! दुबका हुआ  !
इंसान  !

© रजनिश प्रियदर्शी
      19/10/2016

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