Wednesday 8 March 2017

"दहेज़"

"दहेज़"

सोने के सिंघासन पर बैठे हुए
स्वर्ण मुकुटधारी भगवान से
उसने कुछ नहीं माँगा था !
वह बचाना चाहता था ..
एक ज़िन्दगी !
दहेज पिपासुओं से
इसी कोशिस में !
उस भगवान से माँगा उसकी मुकुट...
वो न हाँ' बोला न ना' बोला....
अक्सर चुप्पी को सहमति मान ली जाती है साहब !
मुकुट पाकर बहूत खुश था वो
भगवान ने उसकी मदद जो की थी

भगवान के सर से मुकुट गायब !
सनसनी खेज ख़बर
शहर में आग की तरह फैली
भगवान के आलावे किसी और ने भी देखा था उसे
क्रोधित भक्तों ने कर दिया खून...
उस मज़बूर बाप का....
बिना सच्च जाने...
हक़ीक़त भगवान को पता था ।
भगवानों की दुनियाँ में ....
ऐसा अक़्सर होता रहता है साहब !

कुछ दिनों के बाद
पहली बार उसकेे दहलीज़ के पार आइ थी
वो नहीं ....उसकी जली हुई लाश !
अख़बार वालों ने लिखा था
वो उसी मुकुट चोर की बेटी थी !
मैं एक जज हूँ !
मैं कहता हूँ....
हर बात के तह में होती है एक बात
हत्यारा कोई नहीं वो भगवान है
जो अब तक चुप है...!!

© रजनिश प्रियदर्शी
     10/02/2017

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