"युद्धउन्माद"
जहाँ से शुरू होते हैं
हमारे तुम्हारे दलहिज
हम-तुम वहाँ करेंगे तांडव
मारे जाएंगे हजारों जवान
लाखों दिए जलेंगे शहीदों के नाम !
राष्ट्र प्रतिरोध की ज्वाला से भभक रहा है
जिसके जड़ में है एक विष वृक्ष
फैला रहा है राजनीतिक दंश
चंद चापलूसों का अनोपचारिक विचार है
युद्धउन्माद' ही लाएगी राजनितिक' स्थिरता !
मैं पूछता हूँ !
क्यों नहीं ? उखाड़ते हो यह विष-वृक्ष
जो बनता जा रहा है वट-वृक्ष
फैला रहा है राजनीतिक दंश
और एक दिन हम-तुम बनोगे
प्रलयंकारी
युद्ध ! का अंश !
© रजनिश प्रियदर्शी
09/01/2017
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