Wednesday 8 March 2017

" चुप्पी "

" चुप्पी "

तुम्हारी औकात !
तुम्हें पता है ।
तूम नहीं खरीद सकते महंगी किताबें
नहीं रह सकते शहर के प्राइवेट लॉजों में
नहीं खा सकते बाहर का महंगा खाना
कुछ सुविधाएँ मिलना तुम्हारा अधिकार है
जिसे तुम्हारी औकात देख कर
राज्य ने तय कर रखा है
जो तुम्हें नहीं मिल रहा है

तूम झूठी शान दिखाने में व्यस्त हो
पर तुम्हारे पिता बेचते हैं अपनी जमीन
तूम खरीदते हो महँगी किताबें
रहते हो शहर के प्राइवेट लॉज में
खाते हो बाहर का महँगा खाना
ये तुम्हारी विवश्ता है ।
फिर भी !
तूम चुप थे,
और आज भी चुप हो !

मैं पूछता हूँ !
कब टूटेगी तुम्हारी चुप्पी' ?
कब तक बघारते रहोगे झूठी शान ?
कब कलकलायेगा तुम्हारा कलेजा ?
कब करोगे तुम प्रतिकार ?
जिसके आर में
काला हो गया तुम्हारा अतीत
और हो सकता है काला
भविष्य !

© रजनिश प्रियदर्शी
     24/01/2017

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